भारत की इंद्रधनुषी संस्कृति में विज्ञान संचार पर मंथन                                                                 

      

गूढ़ वैज्ञानिक तथ्यों को सहज एवं सुगम भाषा में आम-जन तक पहुँचाने और समाज में वैज्ञानिक चेतना विकसित करने का दायित्व विज्ञान संचार निभाता है। भिन्न-भिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक रंगों, परंपराओं-आस्थाओं और विचार से बने भारतीय समाज में आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्माण एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसके लिए यह आवश्यक है कि परंपरागत लोक-ज्ञान और आधुनिक विज्ञान में सतत विचार-विनिमय हो। भारतीय संस्कृति और परंपराओं में मौजूद वैज्ञानिक तथ्यों पर स्वस्थ विमर्श और भारत में विज्ञान संचार को एक नया आयाम देने के उद्देश्य से विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक समूहों और वैज्ञानिक संस्थानों के प्रतिनिधि एक मंच पर एकत्रित हो रहे हैं। “विविध संस्कृतियों में विज्ञान संचार : पंथ-प्रधानों की भूमिका” विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय वेबिनार में विभिन्न पंथों के प्रतिनिधि अपने विचार रखेंगे।

भारत के लिए यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है कि एक समय अमेरिका से आयातित गेहूं पर निर्भर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देश अब खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने के साथ-साथ वैश्विक खाद्य श्रृंखला को भी सहारा दे रहा है। उल्लेखनीय है कि आज भारत गेहूं, धान, गन्ना और दालों सहित तमाम कृषि जिंसों का दुनिया में प्रमुख उत्पादक देश बन चुका है। इसमें भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभायी है। देश में हरित क्रांति के जनक डॉ. एमएस स्वामीनाथन के नाम से भला कौन अपरिचित होगा, जिनके प्रयत्न से भारतीय कृषि का परिदृश्य ही बदल गया। दुनिया के क्षेत्रफल का दो प्रतिशत भू-भाग रखने वाला भारत आज न केवल अपने यहां निवास करने वाली विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी का भरण-पोषण कर रहा है, बल्कि दुनिया में तमाम उत्पादों की आपूर्ति कर वैश्विक खाद्य तंत्र पर दबाव को घटाने में भी अहम योगदान दे रहा है।

यह वेबिनार विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एनसीएसटीसी) और स्पंदन संस्था द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जा रहा है। ज़ूम प्लेटफॉर्म पर 18 अक्तूबर को अपराहन 3 बजे से यह आयोजन शुरू होगा। इस वेब-संगोष्ठी में विद्वान वैज्ञानिक, संचारक और पंथ-प्रतिनिधि विमर्श करेंगे कि विविध संस्कृतियों और परंपराओं में वैज्ञानिक दृष्टि को कैसे और अधिक बढ़ावा दिया जा सकता है। भारत की विविध परंपराओं और संस्कृतियों में विद्यमान विज्ञान को धर्मगुरु प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे।


इस वेब-संगोष्ठी में विद्वान वैज्ञानिक, संचारक और पंथ-प्रतिनिधि विमर्श करेंगे कि विविध संस्कृतियों और परंपराओं में वैज्ञानिक दृष्टि को कैसे और अधिक बढ़ावा दिया जा सकता है। भारत की विविध परंपराओं और संस्कृतियों में विद्यमान विज्ञान को धर्मगुरु प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे।

वेब-संगोष्ठी के संयोजक डॉ अनिल सौमित्र ने बताया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा इस राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में मुख्य अभ्यागत के तौर पर अपने विचार रखेंगे। संगोष्ठी की अध्यक्षता विज्ञान भारती के राष्ट्रीय कार्यकारी सचिव जयंत राव सहस्रबुद्धे करेंगे। जबकि, विषय-प्रवर्तन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सलाहकार और राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के अध्यक्ष डॉ मनोज कुमार पटेरिया करेंगे। वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी कार्यक्रम में मॉडरेटर की भूमिका में होंगे।

डॉ सौमित्र ने बताया कि इस वेब-संगोष्ठी में विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक विचारधारा के प्रतिनिधि वक्ता के रूप में उपस्थित होंगे। सनातन परंपरा का प्रतिनिधित्व दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के स्वामी विशालानंद जी करेंगे, जबकि जमाते उलेमा के अध्यक्ष मौलाना सुहैब कासमी इस्लामिक परंपरा, दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंध समिति के सदस्य सरदार परमजीत सिंह चंडोक सिख परंपरा, उत्तरप्रदेश विधानसभा के मनोनीत सदस्य डॉ डेंजिल जॉन गोडिन ईसाई परंपरा, कथाकार और आध्यात्मिक प्रवचनकार साध्वी प्रज्ञा भारती दीदी हिन्दू परंपरा और बी.के. रीना बहन ब्रह्माकुमारी परंपरा में विज्ञान की बात सबके साथ साझा करेंगी।

इस कार्यक्रम का संचालन शिक्षाविद डॉ ऋतु दुबे तिवारी करेंगी। कार्यक्रम के संयोजक डॉ अनिल सौमित्र ने संस्कृति-परंपरा और विज्ञान संचार में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों, शोधार्थियों, संचारकों और अन्य महानुभावों से वेब संगोष्ठी में भागीदारी का आग्रह किया है। उनका कहना है कि यह विमर्श विज्ञान संचार पर एक नयी दृष्टि प्रदान करने में मददगार हो सकता है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/17/10/2020

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