जीनोमिक अध्ययन में छिपा हो सकता है महामारियों का तोड़                                                                 

      

भारत की जनसंख्या 1.3 अरब से अधिक है और यहाँ दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी रहती है। इस समृद्ध आनुवंशिक विविधता के बावजूद भारत को वैश्विक जीनोम अध्ययनों में कम प्रतिनिधित्व मिला है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की दो घटक प्रयोगशालाओं - इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स ऐंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी), दिल्ली और सेंटर फॉर सेलुलर ऐंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी (सीसीएमबी), हैदराबाद द्वारा संचालित एक परियोजना के तहत स्वघोषित रूप से स्वस्थ भारतीयों के 1029 जीनों को अनुक्रमित किया गया है। अनुक्रमित किए गए इन जीन्स के कंप्यूटेशनल विश्लेषण से पता चला है कि वैश्विक जीनोम की तुलना में भारतीय अनुक्रमों में 32 प्रतिशत जीनोमिक वेरिएंट बिल्कुल अलग हैं।

शोधकर्ताओं को पता चला है कि भारत की जनसांख्यकीय संरचना में रिसेसिव एलील्स की अधिकता है। रेसिसिव एक ऐसा गुण है, जो किसी जीन के दो संस्करणों में परस्पर अंतर्संबंध का सूचक होता है। प्रत्येक माता-पिता से उनकी संतति को जीन का एक संस्करण प्राप्त होता है, जिसे एलील कहा जाता है। यदि एलील अलग-अलग हैं, तो प्रभावी एलील व्यक्त होता है, जबकि अन्य एलील का प्रभाव, जिसे रिसेसिव कहा जाता है, छिपा रहता है।

इस विश्लेषण से भारतीय जीनोम डेटासेट में 55,898,122 एकल न्यूक्लियोटाइड वेरिएंट की पहचान की गई है। वैश्विक जीनोम डेटासेट के साथ तुलना करने से पता चला है कि 18,016,257 (32.23 प्रतिशत) विशिष्ट वेरिएंट थे, और ये केवल भारत से अनुक्रमित नमूनों में ही पाए गए हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस परियोजना के परिणाम भारतीय जनसंख्या पर केंद्रित व्यापक जीनोमिक अध्ययन की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। ये जीनोम संसाधन काफी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इससे आबादी और व्यक्तिगत स्तर पर आनुवंशिकी में चिकित्सकों और शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी जानकारी मिल सकती है।


रेसिसिव एक ऐसा गुण है, जो किसी जीन के दो संस्करणों में परस्पर अंतर्संबंध का सूचक होता है। प्रत्येक माता-पिता से उनकी संतति को जीन का एक संस्करण प्राप्त होता है, जिसे एलील कहा जाता है।

इस अध्ययन में उत्पन्न आनुवंशिक वेरिएंट की युग्मविकल्पी आवृत्तियां इंडिजीनोम्स डाटाबेस पर उपलब्ध हैं। इंडिजीनोम्स डेटा संसाधन मेंडेलियन विकारों और सटीक दवा परिणामों में सुधार में शामिल वेरिएंट को वर्गीकृत करने के उद्देश्य से भारतीय आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले आनुवंशिक वेरिएंट की विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने पिछले वर्ष 25 अक्तूबर को इंडिजेन अनुक्रम के प्रयासों को पूरा करने की घोषणा की थी। भारत में विभिन्न आबादी समूहों से पूरे जीनोम अनुक्रम के अंतराल को भरने के लिए सीएसआईआर ने गत वर्ष अप्रैल में इंडिजेन कार्यक्रम शुरू किया था। इस कार्यक्रम के तहत, देश भर से लिए गए 1029 स्व-घोषित स्वस्थ भारतीयों का जीनोम अनुक्रमण पूरा कर लिया गया है।

सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ. शेखर सी. मांडे ने सीएसआईआर-आईजीआईबी और सीएसआईआर-सीसीएमबी की टीमों की सराहना की है, जो इस महत्वपूर्ण डेटा संसाधन को विकसित करने में जुटे हैं। उन्होंने कहा है कि वर्तमान और भविष्य की महामारियों के लिए भारत की जीनोमिक विविधता को समझकर उसके अनुरूप मजबूत प्रतिक्रिया देने में यह प्रयास उल्लेखनीय भूमिका निभा सकता है।

यह संसाधन नैदानिक रूप से कार्रवाई योग्य फार्माकोजेनेटिक वेरिएंट के माइनिंग डेटा के माध्यम से कैरियर स्क्रीनिंग के लिए मार्करों की पहचान, आनुवंशिक रोगों की भिन्नता, बेहतर निदान और सटीक उपचार प्रदान करने में सक्षम बनाते हैं। चरणबद्ध डेटा शोधकर्ताओं को भारतीय-विशिष्ट संदर्भ में जीनोम डाटासेट का निर्माण करने और कुशलता से हेप्लोटाइप जानकारी प्रदान करने में सक्षम बनाएगा। यह संसाधन भारतीय और विदेशी शोधकर्ताओं एवं चिकित्सकों के लिए व्यापक रूप से सुलभ है। इससे संबंधित अध्ययन के परिणाम हाल में शोध पत्रिका, न्यूक्लिक एसिड रिसर्च में प्रकाशित किये गए हैं।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/28/10/2020

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