गांधीवादी यंग टेक्नोलॉजिकल पुरस्कार 2020 की घोषणा                                                                 

      

सल अवशेष का सही निपटान कितना महत्वपूर्ण विषय है इसका अंदाजा इन दिनों राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की लगातार जहरीली होती हवा से लगाया जा सकता है। इस दमघोंटू हवा के लिए फसलों के अवशेष जलाना भी एक बड़ी वजह है। ऐसी समस्याओं का समाधान विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार से संभव है। चितकारा यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के अमरिंदर सिंह और उनकी टीम ने फसल अवशेष के सुरक्षित निपटान का एक अनूठा तरीका निकाला है। उन्होंने इसके लिए एक मशीन बनायी है और उसका नाम रखा है -‘मोक्ष’। यह मशीन एक घंटे में एक एकड़ खेत के फसल अवशेष को नष्ट कर सकती है। ‘मोक्ष’ फसल अवशेष के सिरे को पकड़कर उसे सुखाकर उसका अत्यंत सूखा पाउडर बनाने में भी सक्षम है।

अमरिंदर सिंह और उनके जैसे अन्य युवा इनोवेटर्स के अवदान को मान्यता प्रदान कर उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार हर साल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में छात्रों द्वारा विकसित की गई नयी तकनीक और खोज को पुरस्कृत करती है। इसी कड़ी में 5 नवंबर को केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने ऐसी युवा प्रतिभाओं को गांधीवादी यंग टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन (ग्यति) अवार्ड से पुरस्कृत किया है। इस बार ‘ग्यति’ के अंतर्गत विभिन्न श्रेणियों में 21 अवार्ड और 27 प्रोत्साहन पुरस्कार दिए गए हैं।

इस अवसर पर डॉ. हर्षवर्धन ने युवा छात्र नवोन्मेषकों को अपना स्टार्ट-अप स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि शोध के लिए संसाधन बढ़ाने की दिशा में किस प्रकार सुधारों को अंजाम दिया जा रहा है और उसमें युवाओं, छात्रों एवं महिलाओं द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। उन्होंने युवा नवोन्मेषकों को सलाह दी कि वे डीबीटी, बाइरैक, सीएसआईआर जैसी संस्थाओं द्वारा स्टार्ट-अप के लिए बनाए गए ढांचे का इस्तेमाल कर देश को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार बनें। इस अवसर पर जैव-प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप, सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ. शेखर सी. मांडे, एनआईएफ के पूर्व चेयरमैन एवं सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक डॉ. आरए माशेलकर के अलावा हनी-बी नेटवर्क के संस्थापक और सृष्टि के संयोजक प्रोफेसर अनिल कुमार गुप्ता भी उपस्थित थे।


अमरिंदर सिंह और उनके जैसे अन्य युवा इनोवेटर्स के अवदान को मान्यता प्रदान कर उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार हर साल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में छात्रों द्वारा विकसित की गई नयी तकनीक और खोज को पुरस्कृत करती है। इसी कड़ी में 5 नवंबर को केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने ऐसी युवा प्रतिभाओं को गांधीवादी यंग टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन (ग्यति) अवार्ड से पुरस्कृत किया है।

ग्यति अवार्ड दो श्रेणियों में दिए जाते हैं। पहली श्रेणी - स्टूडेंट्स इनोवेशंस फॉर एडवांसमेंट ऑफ रिसर्च एक्सप्लोरेशंस (SITARE) है, जो जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के अंतर्गत आने वाले जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बाइरैक) द्वारा प्रदान किया जाता है। दूसरी श्रेणी ‘सृष्टि ग्यति’ (SRISTI-GYTI) पुरस्कारों की है, जो सोसायटी फॉर रिसर्च ऐंड इनिशिएटिव्स फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी इनोवेशंस (SRISTI) द्वारा दिए जाते हैं। इन पुरस्कारों एवं प्रोत्साहनों का लक्ष्य प्रौद्योगिकी छात्रों को बायोटेक एवं अन्य स्टार्ट-अप स्थापित करने की दिशा में उन्मुख करना है। इस प्रकार देखा जाए तो यह कवायद विज्ञान का प्रसार करने के साथ ही उद्यमिता को भी बढ़ावा देने वाली है।

‘सितारे ग्यति’ अवार्ड्स के अंतर्गत 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 96 विश्वविद्यालयों और संस्थानों से जुड़े छात्र नवोन्मेषकों की छह श्रेणियों में 250 प्रविष्टियां प्राप्त हुई थीं। वहीं, ‘सृष्टि ग्यति’ अवार्ड की प्रक्रिया में 27 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के 270 विश्वविद्यालयों के आवेदकों की ओर से 42 तकनीकी श्रेणियों में 700 से अधिक प्रविष्टियां मिलीं। उनमें से चुनिंदा प्रविष्टियों का विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी), इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी), जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएसएआर), जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), सीएसआईआर, आईसीएमआर और आईसीएआर के निदेशकों सहित कई प्रतिष्ठित विद्वानों के निर्णायक मंडल द्वारा ऑनलाइन आकलन के आधार पर विजेताओं का चयन किया गया है।

हाल के दिनों में ली-ऑयन बैटरीज का चलन बहुत बढ़ गया है, जिनके निपटान की प्रक्रिया में कॉपर, लीथियम और अन्य मूल्यवान धातुओं को निकालने की तेज एवं पर्यावरण अनुकूल तकनीक ईजाद करने का करिश्मा आईआईटी रुड़की के राहुल सिंह और उनकी टीम ने कर दिखाया है। कुछ इसी प्रकार आईआईटी, दिल्ली के प्रशांत राम जाधव ने एक सेल्फ-सस्टेनेबल ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग तकनीक विकसित की है। पर्यावरण हितैषी यह तकनीक भी ई-कचरे से संसाधनों को हासिल करने में मदददगार होगी। चूंकि, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का चलन कुछ अधिक बढ़ गया है तो उसमें आईआईटी, खड़गपुर के श्रीगणेश का सेल्फ सस्टेनेबल स्मार्ट, फ्लेक्सिबल और मल्टी-फंक्शनल थर्मल ऐंड एनर्जी मैनेजमेंट सिस्टम नयी पीढ़ी के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में अहम भूमिका निभा सकता है। वहीं, आईआईसीटी, हैदराबाद से जुड़ी बुक्के वाणी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर स्वदेशी एटमॉसफेरिक वॉटर जेनरेटर (एडब्ल्यूजी) जैसा आविष्कार किया है। यह पानी की किल्लत वाले पर्वतीय, शुष्क और तटीय इलाकों में बेहद किफायती दरों पर पानी उपलब्ध कराने में सहायक बनेगा। आईआईटी गुवाहाटी के कुलदीप महतो एक ऐसा पोर्टेबल पेपर बेस्ड किट विकसित करने में सफल हुए हैं, जो दूध में पास्चुराइजेशन के स्तर को भांप सकता है। आईसीटी मुंबई के शिवराज नाइक की खोज अल्जाइमर और उन अन्य दिमागी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए संजीवनी साबित हो सकती है, जिनके मामलों में ब्लड-ब्रेन बैरियर एक बड़ी बाधा बन जाता है। ऐसे में नाइक का नॉवेल नैनोटेक्नोलॉजी बेस्ड नॉन-इनवेसिव स्प्रे फॉर्मुलेशन को नाक के जरिये दिमाग तक पहुंचाकर इन बीमारियों में राहत दिलाई जा सकती है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/RM/6/11/2020

Latest Tweets @Indiasciencewire