आपात स्थिति में बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए स्वदेशी तकनीक                                                                 

      

सीएसआईआर-एसईआरसी द्वारा अहमदाबाद की कंपनी मेसर्स अद्वैत इंफ्राटेक को इस तकनीक का लाइसेंस दिया गया है।

क्रवात या फिर भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं अथवा मानव जनित व्यवधानों के कारण ट्रांसमिशन लाइन टॉवरों के गिरने से बिजली आपूर्ति बाधित होती है। ट्रांसमिशन लाइन टॉवरों के फेल होने की स्थिति में बिजली संचरण त्वरित रूप से बहाल करने के लिए भारतीय शोधकर्ताओं ने इमरजेंसी रिट्रीवल सिस्टम (ईआरएस) नामक स्वदेशी तकनीक विकसित की है।

ईआरएस एक हल्का मॉड्यूलर सिस्टम है, जिसका उपयोग चक्रवात या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं, अथवा मानव निर्मित व्यवधानों के दौरान ट्रांसमिशन लाइन टॉवरों के गिरने के तुरंत बाद बिजली को बहाल करने के लिए अस्थायी समर्थन संरचना के रूप में किया जाता है। दो से तीन दिनों में बिजली की बहाली के लिए आपदा स्थल पर ईआरएस को शीघ्रता से असेंबल किया जा सकता है, जबकि स्थायी बहाली में कई सप्ताह लग सकते हैं।

यह तकनीक वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की चेन्नई स्थित प्रयोगशाला - स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग रिसर्च सेंटर (एसईआरसी) द्वारा विकसित की गई है। हाल में हुए एक समझौते के अंतर्गत सीएसआईआर-एसईआरसी द्वारा अहमदाबाद की कंपनी मेसर्स अद्वैत इंफ्राटेक को इस तकनीक का लाइसेंस दिया गया है। सीएसआईआर-एसईआरसी के निदेशक प्रोफेसर संतोष कपूरिया और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, नई दिल्ली के मुख्य अभियंता (पीएसई और टीडी) श्री एस.के. रे महापात्र की उपस्थिति में इससे संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं।


इमरजेंसी रिट्रीवल सिस्टम (ईआरएस)

ईआरएस एक हल्का मॉड्यूलर सिस्टम है, जिसका उपयोग चक्रवात या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं, अथवा मानव निर्मित व्यवधानों के दौरान ट्रांसमिशन लाइन टॉवरों के गिरने के तुरंत बाद बिजली को बहाल करने के लिए अस्थायी समर्थन संरचना के रूप में किया जाता है।

सीएसआईआर-एसईआरसी द्वारा जारी वक्तव्य में इस प्रौद्योगिकी को महत्वपूर्ण बताया गया है, क्योंकि ट्रांसमिशन लाइनों के फेल होने से न केवल जनजीवन गंभीर रूप से प्रभावित होता है, बल्कि बिजली कंपनियों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बिजली आपूर्ति बहाल होने में जितना अधिक समय लगता है, नुकसान का दायरा भी उसी के अनुरूप बढ़ता रहता है। इसीलिए, क्षतिग्रस्त संरचनाओं को फिर से स्थापित करने या उसके निवारण के लिहाज से समय बहुत महत्व रखता है।

ईआरएस सिस्टम के निर्माता दुनियाभर में बहुत कम हैं और लागत अपेक्षाकृत अधिक है। भारत में भी यह सिस्टम आयात करना पड़ता है, जिस पर भारी रकम खर्च होती है। नयी प्रौद्योगिकी पहली बार भारत में इस सिस्टम के विनिर्माण को सुलभ बनाएगी। शोधकर्ताओं का कहना है कि ईआरएस की भारत के साथ-साथ सभी सार्क और अफ्रीकी देशों के बाजार में बेहद जरूरत है। इसलिए, इस तकनीक का विकास आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया की दिशा में एक बड़ी छलांग माना जा रहा है।

संरचनात्मक रूप से बेहद स्थिर बॉक्स वर्गों से बना, ईआरएस हल्का, मॉड्यूलर है और इसका दोबारा उपयोग किया जा सकता है। यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी की दशाओं के लिए मेंबर कनेक्शन से लेकर नींव तक पूर्ण समाधान प्रदान करता है। इस सिस्टम की जाँच कठोर संरचनात्मक परीक्षणों के माध्यम से की जाती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि आपदा स्थल पर ईआरएस को असेंबल करने और स्थापित करने के लिए बुनियादी ज्ञान और उपकरण पर्याप्त हैं। ट्रांसमिशन लाइन सिस्टम के विभिन्न वोल्टेज-क्लास के लिए उपयुक्त कॉन्फिगरेशन संभव हैं। ईआरएस को 33 से 800 के.वी. वर्ग की बिजली लाइनों के लिए स्केलेबल सिस्टम के रूप में डिजाइन किया गया है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/16/11/2020

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