ऑस्टियोआर्थराइटिस का प्रभावी उपचार खोज रहे शोधकर्ताओं को नई सफलता                                                                 

      

अध्ययन के दौरान चूहे के जोड़ों की स्थिति (फोटोः कामिनी एम. धनाबलन)

रीर के विभिन्न अंगों की सुरक्षा में कार्टिलेज की भूमिका अहम होती है। लचीले तथा चिकने लोचदार उत्तकों की यह संरचना जोड़ों में लंबी हड्डियों के सिरों को कवर तथा संरक्षित करने के लिए रबड़ की पैडिंग की तरह कार्य करती है। कार्टिलेज और उसमें मौजूद नाजुक हड्डियों के टूटने से होने वाली जोड़ों से संबंधित बीमारी ऑस्टियोआर्थराइटिस का उपचार एक चुनौती है। एक ताजा अध्ययन में भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बंगलूरू के वैज्ञानिकों ने ऐसा माइक्रोपार्टिकल फॉर्मूलेशन तैयार किया है जो पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में उपयोग होने वाली दवा का प्रवाह निरंतर बनाए रखने में मददगार हो सकता है।

आईआईएससी के शोधकर्ताओं ने शरीर में दवा के निरंतर प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए एक विशिष्ट पॉलिमर मैट्रिक्सडिजाइन किया है, जो पॉली (लैक्टिक-को-ग्याकोलिक एसिड) पीएलजीए नामक जैविक सामग्री से बनाया गया है। कोशिका कल्चर और चूहों पर किए गए शुरुआती अध्ययन में शोधकर्ताओं को नये पॉलिमर मैट्रिक्सके प्रभावी नतीजे मिले हैं, जो दवा के लगातार प्रवाह के कारण सूजन में कमी और कार्टिलेज मरम्मत को दर्शाते हैं।

ड्रग डिलिवरी में बड़े पैमाने पर पीएलजीए का उपयोग होता है।अंगों के प्रत्यारोपण के दौरान शरीर द्वारा प्रत्यारोपित अंग को नकारने की आशंका से निपटने के लिए रैपामाइसिन का उपयोग प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। चिकित्सा पूर्व अध्ययनों में इसे कोशिकाओं के क्षरण एवं कार्टिलेज के नुकसान की रोकथाम के जरिये ऑस्टियोआर्थराइटिस के उपचार में प्रभावी पाया गया है। हालांकि, कम समय (करीब 1-4 घंटे)में दवा का असरखत्म होने लगता है तो बार-बार इंजेक्शन की देना पड़ता है। इस समस्या से निपटने के लिए पीएलजीए और रैपामाइसिन को संयुक्त रूप में पेश किया गया है ताकि दवा के निरंतर प्रवाह को बनाए रखकर मरीजों को बार-बार होने वाली परेशानी से बचाया जा सके। शोधकर्ताओं ने इसके लिए रैपामाइसिन को पीएलजीए माइक्रोपार्टिकल्स में कैप्सूलबद्ध किया है।


भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बंगलूरू के वैज्ञानिकों ने ऐसा माइक्रोपार्टिकल फॉर्मूलेशन तैयार किया है जो पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में उपयोग होने वाली दवा का प्रवाह निरंतर बनाए रखने में मददगार हो सकता है।

इस अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता कामिनी एम. धनाबलन ने बताया -“कोशिका अध्ययनों में पाया गया है कि रैपामाइसिन से युक्त पीएलजीए माइक्रोपार्टिकल 21 दिनों तक दवा का प्रवाह बनाए रख सकते हैं। जबकि, इसे चूहों के जोड़ों पर इंजेक्ट करने के बाद पाया गया है कि पीएलजीए माइक्रोपार्टिकल 30 दिन बने रह सकते हैं।” यह अध्ययन शोध पत्रिका बायोमैटेरियल्स साइंस में प्रकाशित किया गया है।

इस फॉर्मूलेशन के प्रभाव के मूल्यांकन के लिए शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में कोन्ड्रोसाइट्स या कार्टिलेज कोशिकाओं को कल्चर किया है और फिर ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी स्थिति उत्पन्न करके उस पर विभिन्न दबावों का परीक्षण किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि पीएलजीए माइक्रोपार्टिकल्स युक्त रैपामाइसिन से उपचार को ऑस्टियोआर्थराइटिस से निजात दिलाने में प्रभावी पाया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि दवा का निरंतर प्रवाह बनाए रखने वाला यह तंत्र मरीजों की सेहत में सुधार को सुनिश्चित कर सकता है, जिससे वे बार-बार अस्पताल के चक्कर लगाने से बच सकते हैं।

इस अध्ययन से जुड़े आईआईएससी के वरिष्ठ शोधकर्ता रचित अग्रवाल ने बताया कि “शुरुआती अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह फॉर्मूलेशन बार-बार दवा लेने के अंतराल को एक महीने तक बढ़ा सकता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस से ग्रस्त चूहों पर इस फॉर्मूलेशन के व्यापक प्रभाव के आकलन के लिए विस्तृत अध्ययन किए जा रहे हैं।”
इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/31-07-2020

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