धान के अपशिष्ट से सिलिका अलग करने की नयी तकनीक                                                                 

      

सिलिका निष्कर्षण प्रक्रिया का अवलोकन करते हुए शोधकर्ता

धान से चावल अलग करने के दौरान उत्पन्न भूसी व्यापक रूप से उपलब्ध कृषि अपशिष्टों में से एक है। धान से चावल को अलग करने से पहले इसका जलतापीय (Hydrothermal) उपचार किया जाता है। इस दौरान ईँधन के रूप में जलायी जाने वाली धान की भूसी की राख पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक होती है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने धान की भूसी को जलाने से पैदा हुई राख जैसे जैविक अपशिष्ट के निपटारे के लिए एक ईको-फ्रेंडली और किफायती पद्धति विकसित की है। इस पद्धति की मदद से धान की भूसी की राख से सिलिका नैनो कण अलग किए जा सकते हैं, जिनका उद्योग-धंधों में व्यावसायिक उपयोग हो सकता है।

यह पद्धति आईआईटी, खड़गपुर के डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल ऐंड फूड इंजीनियरिंग के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई है। इसे विकसित करने वाले शोधकर्ताओं ने बताया कि धान की भूसी की राख में 95 प्रतिशत तक सिलिका तत्व होता है, जिसे अलग करने के बाद बचे हुए अपशिष्ट को जलस्रोतों में सुरक्षित रूप से प्रवाहित किया जा सकता है।

इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर ए.के. दत्ता ने बताया कि “इस तरह प्राप्त सिलिका का व्यावसायिक उपयोग भी किया जा सकता है। इसका उपयोग मुख्य रूप से धातुओं के शोधन और सोलर सिलिकॉन बनाने में किया जा सकता है।”


विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं से प्राप्त सिलिका

धान की भूसी को जलाने से पैदा हुई राख जैसे जैविक अपशिष्ट के निपटारे के लिए एक ईको-फ्रेंडली और किफायती पद्धति विकसित की है। इस पद्धति की मदद से धान की भूसी की राख से सिलिका नैनो कण अलग किए जा सकते हैं, जिनका उद्योग-धंधों में व्यावसायिक उपयोग हो सकता है।

चार अलग-अलग क्षारीय तत्वों - पोटैशियम हाइड्रोऑक्साइड, पोटैशियम कार्बोनेट, सोडियम हाइड्रोऑक्साइड एवं सोडियम कार्बोनेट के अलावा दो प्रमुख विलायकों – पानी तथा एथेनॉल का उपयोग धान की भूसी की राख से सिलिका नैनो कणों को अलग करने में किया गया है। इस तरह प्राप्त सिलिका की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं का मूल्यांकन एनर्जी डिस्पर्सिव एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर, एक्स-रे डिफ्रेक्टोमीटर, फूरियर-ट्रांसफॉर्म इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर और परमाणु अवशोषण स्पेक्ट्रोफोटोमीटर के साथ संलग्न फील्ड-एमिशन स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के उपयोग से किया गया है।

इस पद्धति के व्यापक उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए इसका ईको-फ्रेंडली एवं प्रदूषण मुक्त होना भी जरूरी था। शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान धान की भूसी की राख को पानी के ऊपर फैलाया और फिर उसमें सोडियम कार्बोनेट मिलाया गया। इसके परिणामस्वरूप कार्बनडाईऑक्साइड के बजाय कार्बोनिक एसिड उत्पन्न होता है, जो पर्यावरण के लिए नुकसानदायक नहीं है।

प्रोफेसर दत्ता ने बताया कि "इस अध्ययन के परिणामों से स्पष्ट हुआ है कि धान के अपशिष्ट से निकाले गए सिलिका नैनो कणों की रूप एवं सूक्ष्म-संरचना संबंधी विशेषताएं बाजार में उपलब्ध सिलिका के जैसी ही हैं।"

शोधकर्धाताओं ने धान की भूसी की राख से प्राप्त सिलिका नमूनों के उपचार का लागत विश्लेषण भी किया है। उन्होंने पाया कि धान की भूसी की राख से प्राप्त सिलिका नैनो कण मैग्नीशियम सिलिकेट के लिए उपयुक्त एवं किफायती तत्व हो सकते हैं।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/13/10/2020

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