कोविड-19 की रोकथाम, ग्रामीण आजीविका के लिए आईआईसीटी और सिप्ला की साझेदारी                                                                 

      

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की हैदराबाद स्थित घटक प्रयोगशाला इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी (आईआईसीटी)ने कोविड-19 से लड़ने के अपने प्रयासों के तहत जैव-प्रतिरोधी गुणों से लैस हाइड्रोफोबिक (जल-रोधी) फेस-मास्क सांस (SAANS) विकसित किया है। एक नई परियोजना के तहत अब यह मास्ककोविड-19 की रोकथाम के साथ-साथ हाइजीन गुणवत्ता में सुधार, स्वयं सहायता समूहों को मास्क के उत्पादन के जरिये रोजगार और ग्रामीण छोटे तथा मध्यम उद्योगों को आमदनी के अवसर उपलब्ध कराने में भी मददगार हो सकता है। वैज्ञानिक सामाजिक जिम्मेदारी के तहत शुरू की गई इस परियोजना के अंतर्गत आईआईसीटी ने सिप्ला फाउंडेशन के साथ हाथ मिलाया है।

सीएसआईआर द्वारा कोविड-19 से लड़ने के लिए अलग-अलग आयामों पर काम किया जा रहा है, जिनमें नई एवं पुनर्निर्मित दवाओं,टीकों, डायग्नोस्टिक्स और हॉस्पिटल असिस्टेड डिवाइसेज का निर्माण शामिल है। इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिक सामाजिक जिम्मेदारी के रूप मेंसीएसआईआर ग्रामीण उद्यमियों / लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रमों की आय और जीवन स्तर बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह पहल सामाजिक एवं स्वैच्छिक संगठनों की मदद से पहले से विकसित तकनीकों के उपयोग और विस्तार को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे आईआईसीटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एस. श्रीधर ने बताया कि “इस फेस-मास्क में जैव-प्रतिरोधी गुणों से युक्त 3-4 परतें हैं, जो विशिष्ट हाइड्रोफोबिक पॉलिमर से बनी हैं। यह मास्क 60-70% तक वायरस को रोक सकता है।यह न्यूनतम 0.3 माइक्रोमीटर आकार की श्वसन बूंदों को 95-98 प्रतिशत तकरोककर वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में प्रभावी हो सकता है। इस मास्क को 30 बार तक धोया जा सकता है और दो से तीन महीने तक बार-बार उपयोग किया जा सकता है। यह दूसरे मास्कों के मुकाबले सांस लेने में अधिक अनुकूल है, जिससे यह अन्य महंगे एवं सीमित उपयोग वाले मास्कों की तुलना में बेहतर माना जा रहा है।”


इस फेस-मास्क में जैव-प्रतिरोधी गुणों से युक्त 3-4 परतें हैं, जो विशिष्ट हाइड्रोफोबिक पॉलिमर से बनी हैं। यह मास्क 60-70% तक वायरस को रोक सकता है।यह न्यूनतम 0.3 माइक्रोमीटर आकार की श्वसन बूंदों को 95-98 प्रतिशत तकरोककर वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में प्रभावी हो सकता है।

आईआईसीटी में बिजनेस डेवेलपमेंट विभाग की प्रमुख डॉ. डी. शैलजा ने बताया कि सिप्ला फाउंडेशन ने 'जैव-प्रतिरोधी गुणों से लैस, बहुस्तरीय, हाइड्रोफोबिक फेस मास्कपरियोजना' के लिए हाथ मिलाया है। ग्रामीण तेलंगाना के चिह्नित मंडलों में वितरण के लिए उच्च गुणवत्ता के एक लाख मास्क उत्पादन के लिए शुरुआती अनुदान के साथ यह साझेदारी शुरू हो रही है। उन्होंने बताया कि सिप्ला फाउंडेशन से जुड़ी स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिये इस परियोजना का विस्तार देशभर में किए जाने की योजना है।

सीएसआईआर के महानिदेशकडॉ शेखर सी. मांडे ने पिछले कई दशकों से सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सिप्ला के योगदान का उल्लेख करते हुए सीएसआईआर के साथ साझेदारी को मजबूत बनाने पर जोर दिया है। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में उन्होंने उद्योगों एवं शोध संस्थानों के बीच इस तरह की साझेदारी को महत्वपूर्ण बताया है।

सीएसआईआर-आईआईसीटी के निदेशक डॉ एस. चंद्रशेखर ने कहा है कि यह परियोजना संस्थान कीयह पहल सिप्ला के साथ मौजूदा साझेदारी को और मजबूत करेगी। इस मौके पर उन्होंने कोविड-19 उपचार के लिए हाल में लॉन्च की गई जेनेरिक जैव-प्रतिरोधी दवा सिप्लेंजा का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सिप्ला के साथ यह परियोजना ग्रामीण समुदायों को रोजगार मुहैया कराने के साथ-साथ कोविड-19 की रोकथाम में मददगार हो सकती है।

सिप्ला फाउंडेशन की मैनेजिंग ट्रस्टी रूमाना हामिद ने कहा, “सिप्ला फाउंडेशन कोविड-19 से जुड़े राहत कार्यों से संबंधित विभिन्न आयामों पर पहले से काम कर रहा है। यह ऐसी परियोजना है जहां जीवन की सुरक्षा के साथ-साथ लोगों की आजीविका सुनिश्चित करने और समुदायों को सशक्त बनाने के लिए एक नई और सस्ती प्रौद्योगिकी का हमें लाभ मिल रहा है।”
इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/05-08-2020

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