भारत में पेट के कृमि संक्रमण में उल्लेखनीय गिरावट                                                                 

      

मिट्टी से संचारित परजीवी कृमि या सॉइल-ट्रांसमिटेड हेल्मिंथ (एसटीएच) संक्रमण बच्चों के शारीरिक विकास और उनके स्वास्थ्य से जुड़ी एक प्रमुख चुनौती है। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्या्ण मंत्रालय ने बच्चों में कृमि मुक्ति के लिए राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (नेशनल डीवर्मिंग-डे) कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके प्रभावी परिणाम देखने को मिले हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अनुवर्ती सर्वेक्षण में 14 राज्यों के बच्चों में मिट्टी से संचारित होने वाले परजीवी कृमि के प्रसार में उल्लेखनीय कमी अंकित की गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा हाल में जारी एक विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई है।

राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस कार्यक्रम के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) और अन्य भागीदारों के साथ मिलकर अनुवर्ती सर्वेक्षण शुरू किया है। अब तक 14 राज्यों में यह अनुवर्ती सर्वेक्षण पूरा कर लिया गया है। बेसलाइन प्रसार सर्वेक्षण की तुलना में इन सभी 14 राज्यों में मिट्टी से संचारित होने वाले कृमि (एसटीएच) संक्रमण में कमी देखी गई है। मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में कृमि प्रसार में पर्याप्त कमी अंकित की गई है।

छत्तीसगढ़ ने अब तक राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस के 10 सफल चरण पूरे कर लिए हैं, जहाँ वर्ष 2016 में 74.6 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2018 में कृमि प्रसार में 13.9 प्रतिशत तक की गिरावट आयी है। इसी तरह, सिक्किम में नौवें चरण में, वर्ष 2015 के 80.4 प्रतिशत कृमि प्रसार की तुलना में वर्ष 2019 में 50.9 प्रतिशत तक गिरावट देखी गई है। आंध्र प्रदेश में नौ चरणों में वर्ष 2016 के 36 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2019 में कृमि प्रसार 34.3 प्रतिशत तक कम हुआ है। राजस्थान ने वर्ष 2013 में 21.1 की कम आधार रेखा के कारण सिर्फ एक वार्षिक चरण लागू किया था। वहाँ वर्ष 2019 में कृमि प्रसार एक प्रतिशत कम दर्ज किया गया है।


भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्या्ण मंत्रालय ने बच्चों में कृमि मुक्ति के लिए राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (नेशनल डीवर्मिंग-डे) कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके प्रभावी परिणाम देखने को मिले हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अनुवर्ती सर्वेक्षण में 14 राज्यों के बच्चों में मिट्टी से संचारित होने वाले परजीवी कृमि के प्रसार में उल्लेखनीय कमी अंकित की गई है।

राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस की शुरुआत वर्ष 2015 में हुई थी। इस कार्यक्रम के अंतर्गत साल में दो बार एक दिवसीय अभियान आयोजित किया जाता है। इस अभियान के दौरान स्कूकलों एवं आंगनवाड़ियों के जरिये डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदित एल्बेंडाजोल टैबलेट बच्चों और किशोरों को दी जाती है, ताकि उन्हें आंतों के कीड़ों के संक्रमण से मुक्त किया जा सके। इसके साथ ही, संक्रमण की रोकथाम के लिए जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। देश में इस साल की शुरुआत में कृमि मुक्ति के अंतिम दौर में (जो कोविड महामारी के कारण रुका हुआ था) 25 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 11 करोड़ बच्चों और किशोरों को एल्बेंडाजोल टैबलेट दी गई है।

खुले में शौच और संक्रमित मिट्टी को छूने आदि से ये परजीवी बच्चों की आंतों में पहुँच जाते हैं और बढ़ने लगते हैं। बच्चों को मिलने वाले पोषक तत्व इन कीड़ों द्वारा उपयोग कर लिये जाते हैं, जिससे बच्चों का समग्र विकास बाधित होता है। गोल कृमि (असकरियासिस लंबरिकॉइड-), वीप वार्म (ट्राच्यूरिस ट्राच्यूरिया), अंकुश कृमि (नेकटर अमेरिकानस और एन्क्लोस्टोम डुओडिनेल) जैसे कीड़े मनुष्य को संक्रमित करते है। इन परजीवी कीड़ों के संक्रमण से एनीमिया, कुपोषण, पेट दर्द, शारीरिक कमजोरी, उल्टी, दस्त, भूख कम लगना, मानसिक एवं कुष्ठ रोग जैसी गंभीर बीमारिया उत्पन्न हो सकती हैं। मलिन बस्तियों और साफ-सफाई के अभाव में यह संक्रमण फैलने की आशंका अधिक होती है।

कृमि संक्रमण की इस चुनौती से लड़ने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) नियमित तौर पर कृमि मुक्ति (डीवर्मिंग) को अपरिहार्य मानता है। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि ऐसा करके बच्चों और किशोरों के शरीर से कृमि संक्रमण खत्म करके उन्हें बेहतर पोषण एवं स्वास्थ्य जीवन उपलब्ध कराया जा सकता है।

भारत में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस का पहला चरण वर्ष 2015 में फरवरी माह में आयोजित किया गया था तथा ग्यारह राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में 8.9 करोड़ बच्चों को कृमिनाशक दवा दी गयी थी। फरवरी 2018 तक 26.68 करोड़ बच्चों को एल्बेंडाजोल दिया गया है और वर्ष 2015 से अब तक एक से उन्नीस वर्ष के बच्चों और किशोरों को एल्बेंडाजोल की 114 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/21/10/2020

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