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जब खुलने लगे आनुवंशिक कोड में छिपे जीवन के रहस्य                                                                 

      

डॉ. हरगोविंद खुराना

जीवों के गठन से लेकर बीमारियों की पहचान और उनके उपचार में आनुवंशिक कोड की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। उल्लेखनीय है कि बीमारियों की जडें हमारे डीएनए और जेनेटिक्स यानी आनुवंशिकी में छिपी होती हैं। आज विज्ञान की इस धारा ने बहुत प्रगति कर ली है, जिसकी आधारशिला रखने वाले वैज्ञानिकों में डॉ. हरगोविंद खुराना का नाम प्रमुखता से शामिल है। अविभाजित भारत के मुल्तान जिले (वर्तमान पाकिस्तान) में 09 जनवरी 1922 को जन्मे खुराना को डीएनए, जेनेटिक्स और बायोकेमिस्ट्री (जैव-रसायन) में अमूल्य योगदान के लिए याद किया जाता है। डॉ. खुराना के इस अविस्मरणीय योगदान के कारण उन्हें वर्ष 1968 में विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका की महत्ता दर्शाने के लिए दिया गया था। नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह भारतीय मूल के तीसरे व्यक्ति थे। इसके अगले वर्ष 1969 में भारत सरकार ने भी उन्हें अपने तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से अलंकृत किया। उनके तमाम निष्कर्ष आज भी शोध-अनुसंधान का आधार बन रहे हैं। गूगल भी डॉ. हरगोबिंद खुराना के जन्मदिन पर डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर चुका है।

खुराना बाल्यकाल से ही उत्कृष्ट विद्यार्थी रहे। इससे उन्हें छात्रवृत्तियों का उपहार मिलता रहा। पंजाब विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातकोत्तर के उपरांत वह उच्च अध्ययन के लिए ब्रिटेन गए। वहाँ उन्होंने अपना शोध कार्य पूरा किया और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। भारत लौटे, परंतु यहाँ उचित अवसर के अभाव में बेहतर संभावनाओं को भुनाने के लिए अमेरिका चले गए। उन्होंने अमेरिकी नागरिकता लेकर वहीं अंतिम सांस ली। 1960 के दशक में अमेरिका के विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में कार्यरत रहकर डॉ. खुराना कोशिका के रासायनिक ढांचे के अध्ययन में संलग्न रहे। हालांकि, इस दिशा में पहले से ही शोध-अनुसंधान अनवरत जारी थे, परंतु डॉ. खुराना इस मोर्चे पर क्रांतिकारी परिणाम लाने में सफल रहे। पिछली सदी के उत्तरार्ध के आरंभ में उन्होंने निरेनबर्ग की इस खोज की पुष्टि करते हुए बताया कि डीएनए अणु के घुमावदार ‘एक्सल’ पर चार अलग-अलग प्रकार के न्यूक्लियोटाइड की संरचना वास्तव में कोशिका के रासायनिक ढांचे और उसकी कार्यविधि को निर्धारित करता है। उन्होंने डीएनए के एक तंतु पर अमीनो अम्ल निर्माण के लिए न्यूक्लियोटाइड के 64 संभावित युग्मकों (कॉंबिनेशन)को पढ़ा, जो भविष्य में उनके कई महत्वपूर्ण शोधों का आधार बना।


जीवों के गठन से लेकर बीमारियों की पहचान और उनके उपचार में आनुवंशिक कोड की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। उल्लेखनीय है कि बीमारियों की जडें हमारे डीएनए और जेनेटिक्स यानी आनुवंशिकी में छिपी होती हैं। आज विज्ञान की इस धारा ने बहुत प्रगति कर ली है, जिसकी आधारशिला रखने वाले वैज्ञानिकों में डॉ. हरगोविंद खुराना का नाम प्रमुखता से शामिल है। अविभाजित भारत के मुल्तान जिले (वर्तमान पाकिस्तान) में 09 जनवरी 1922 को जन्मे खुराना को डीएनए, जेनेटिक्स और बायोकेमिस्ट्री (जैव-रसायन) में अमूल्य योगदान के लिए याद किया जाता है। डॉ. खुराना के इस अविस्मरणीय योगदान के कारण उन्हें वर्ष 1968 में विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका की महत्ता दर्शाने के लिए दिया गया था। नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह भारतीय मूल के तीसरे व्यक्ति थे। इसके अगले वर्ष 1969 में भारत सरकार ने भी उन्हें अपने तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से अलंकृत किया। उनके तमाम निष्कर्ष आज भी शोध-अनुसंधान का आधार बन रहे हैं। गूगल भी डॉ. हरगोबिंद खुराना के जन्मदिन पर डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर चुका है।

जीवन भर विज्ञान सेवी रहे डॉ. खुराना का सबसे उल्लेखनीय काम डीएनए यानी जीन इंजीनियरिंग की बुनियाद रखना था। उन्होंने अपने दो अमेरिकी साथी वैज्ञानिकों डॉ. राबर्ट होले और डॉ. मार्शल निरेनबर्ग के साथ डीएनए अणु की संरचना का ढांचा समझाया था। अपने शोध में उन्होंने यह दर्शाया था कि डीएनए किस प्रकार प्रोटीन संश्लेषण का काम करता है। उसमें यह भी पता चला कि डीएनए और आरएनए की जुगलबंदी से ही जींस बनते है। इन्हीं जींस को मानव जीवन का मूल आधार माना जाता है। इन्हीं अम्लों में आनुवंशिकता के रहस्य निहित हैं, जो मानव शरीर से जुड़ी तमाम पहेलियों को सुलझाने में काम आते हैं। इस प्रकार यदि मानव शरीर को एक कंप्यूटर माना जाए तो डॉ. खुराना की खोज ने उसका पासवर्ड तलाशने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। जब तक पासवर्ड नहीं पता हो, तो किसी कंप्यूटर सिस्टम को खोलना आसान नहीं होता। डॉ. खुराना ने एक प्रकार से मानव शरीर की कुंजी तलाशने का कार्य किया, और उनका यह शोध आज भी अद्यतन शोधों का आधार बना हुआ है, जो जीन विज्ञान में नई नूतन खोजों का निमित्त बन रहा है।

उन्होंने जिन कृत्रिम जीन्स पर अनुसंधान किया, उसने मानव शरीर की शारीरिक संरचना के साथ ही उसके गुण एवं स्वभावों को जानने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। मानव शरीर रूपी इमारत की बुनियाद इन्हीं मानव जीन्स के आधार पर रखी जाती है और उनकी सही जानकारी मानव को स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों से दूर रख सकती है। उनकी यह खोज कितनी महत्वपूर्ण थी, इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि नोबेल से सम्मानित होने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन्हें अपनी 'राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी' की सदस्यता प्रदान की। अमेरिका ऐसी सदस्यता अति विशिष्ट वैज्ञानिकों को ही प्रदान करता है। अंतिम समय तक शोध-अनुसंधान, अध्ययन-अध्यापन के प्रति समर्पित रहे इस कालजयी वैज्ञानिक का 9 नवम्‍बर 2011 को अमेरिका के मैसाचुसेट्स में निधन हो गया। वह भले ही अब हमारे बीच में न हों, परंतु उनका काम आज भी मानव जीवन के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/RM/09/01/2021

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