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शून्य छाया दिवस, जब परछाई भी साथ छोड़ देती है                                                                 

      

क्सर लोग सोचते हैं कि हर दिन दोपहर में सूर्य ठीक सिर के ऊपर आ जाता है और हमारी छाया की लंबाई शून्य हो जाती है। पर, यह सच नहीं है। ऐसा साल में केवल दो दिन होता है, वह भी तब जब आप कर्क और मकर रेखा के बीच में कहीं रहते हों। हमारी छाया की लंबाई क्षितिज से सूर्य की ऊंचाई पर निर्भर करती है। दिन के आरंभ में यह लंबी होती है और जैसे-जैसे दिन चढ़ता है, छाया छोटी होती जाती है। मध्याह्न के समय तो हमारी परछाई सबसे छोटी हो जाती है। लेकिन, हर रोज छाया की लंबाई मध्याह्न के समय शून्य नहीं होती।

पृथ्वी की धुरी जिस पर वह घूमती है उसकी कक्षा (जिसमें वह सूर्य का चक्कर लगाती है) से 23.4 अंश पर झुकी रहती है। इसी कारण ऋतु परिवर्तन, सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायण, दिन की लंबाई का घटना-बढ़ना इत्यादि होता है। यही वजह है कि सूर्य खगोलीय विषुवत रेखा से 23.4 अंश उत्तर और इतना ही आकाश में दक्षिण की ओर जाता है। खगोलीय विषुवत से सूर्य के विस्थापन को क्रांति कोण या डेक्लिनेशन कहा जाता है। वर्ष में अलग-अलग समय पर सूर्य की स्थिति बदलती रहती है और वह शून्य से 23.4 अंश उत्तर और इतना ही दक्षिण की ओर जाता है। इस कारण सूर्य के कर्क, विषुवत और मकर रेखाओं के ठीक ऊपर चमकने के कारण मध्याह्न के समय सूर्य सिर के ठीक ऊपर होता है। इसीलिए, उन अलग-अलग तिथियों पर वहां किसी सीधी खड़ी वस्तु की छाया की लंबाई शून्य हो जाती है।

इसके अनेक प्रभाव पड़ते हैं; वर्ष में केवल वर्ष में दो दिवस 21 मार्च (वसंत विषुव) और 23 सितंबर (शरद विषुव) ऐसे होते हैं जब दिन और रात्रि की लंबाई समान होती है। ग्रीष्म अयनांत (21 जून) को सूर्य कर्क रेखा (23.4 अंश उत्तर) के ठीक ऊपर चमकता है और क्रमशः दक्षिण की ओर बढ़ते हुए 22 दिसंबर (शीत अयनांत) को मकर रेखा ऊपर आ जाता है। 21 मार्च को कर्क रेखा पर दिन का प्रकाश 13.35 घंटे और रात्रि में अंधकार 10.25 घंटे रहता है। 22 दिसंबर को मकर रेखा पर भी यही घटनाक्रम होता है। इसी कारण उत्तरी गोलार्ध में 21 मार्च से दिन के प्रकाश का समय 12 घंटे से क्रमशः बढ़ते जाता है। यही ऋतु परिवर्तन का कारण है।

पृथ्वी की कर्क और मकर रेखाओं के बीच के क्षेत्र में 21 मार्च से 21 जून के बीच एक दिन ऐसा आता है जब किसी स्थान पर किसी वस्तु की छाया की लंबाई शून्य हो जाती है। उस दिन किसी सीधी खड़ी बेलनाकार वस्तु की छाया उसके नीचे छिप जाती है। 21 जून और 23 सितंबर के बीच एक बार फिर ऐसा होता है। दोपहर के समय इन दो दिनों को छोड़कर छाया की लंबाई कुछ न कुछ रहती है। छाया की लंबाई शून्य होने की तिथि इस बात से तय होती है कि उस स्थान का अक्षांश कितना है। विषुवत रेखा का अक्षांश शून्य होता है। इसी से अक्षांश की माप की जाती है।


" पृथ्वी की कर्क और मकर रेखा के बीच के क्षेत्र में 21 मार्च से 21 जून के बीच एक दिन ऐसा आता है जब किसी स्थान पर किसी वस्तु की छाया की लंबाई शून्य हो जाती है। 21 जून और 23 सितंबर के बीच एक बार फिर ऐसा होता है। "

कर्क रेखा का अक्षांश 23.4 अंश उत्तर और मकर रेखा का अक्षांश -23.4 अंश दक्षिण होता है। इस तरह कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित भारत के सभी स्थानों में यह घटना होती है। कर्क रेखा के थोड़ा-सा दक्षिण में स्थित स्थानों में गांधीनगर, भोपाल, रायपुर, रांची, कोलकाता और आइजोल शामिल हैं। देश के एकदम दक्षिणी छोर पर स्थित कन्याकुमारी में 10 अप्रैल के आसपास ऐसा होता है। बेंगलुरु में यह घटना 24 अप्रैल और मुंबई में 16 मई को होती है। सूर्य के विषुवत से कर्क रेखा की ओर बढ़ते समय (उत्तरायण) अलग-अलग स्थानों पर शून्य-छाया-दिवस होता है। ठीक ऐसा ही एक बार फिर होता है जब सूर्य दक्षिणायण होकर वापस विषुवत (और फिर मकर रेखा) की ओर गति करता है। लेकिन, मानसून के कारण इन घटनाओं को प्रायः देखना मुश्किल होता है।

नयी दिल्ली, जयपुर, लखनऊ और प्रयागराज जैसे कई जाने पहचाने और महत्वपूर्ण शहरों के नाम शून्य छाया दिवस की सूची में नहीं हैं। इसका कारण यह है कि इन शहरों में यह घटना नहीं होगी, बल्कि 21 जून को वहां स्थानीय मध्यान्ह के समय छाया की लंबाई न्यूनतम होगी।

खगोलशास्त्री आलोक मंदावगने ने एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के लिए एंड्रॉइड मोबाइल फोन के लिए जेडएसडी फाइंडर (zsd finder) नामक एक ऐप बनाया है। इस ऐप को गूगल प्ले-स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं। इसके द्वारा पृथ्वी के किसी भी स्थान के लिए शून्य छाया दिवस ज्ञात कर सकते हैं। वह नजारा भी यादगार होता है जब ढेर सारे लोग किसी खुले स्थान में एक गोले में खड़े होकर उस क्षण की प्रतीक्षा करें और कोई अन्य व्यक्ति उनके पैरों के नीचे गायब होती छाया को कैमरे में कैद कर लेता है।

इस सारणी में भारत में कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित कुछ शहरों में शून्य-छाया-दिवस की तारीख और समय दिए गए हैं।

(लेखक नेहरु तारामंडल, मुंबई के पूर्व निदेशक हैं।)


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