नए ग्रिड मॉडल से सार्क देशों में दूर हो सकती है बिजली की किल्लत

क्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) देशों में बिजली आपूर्ति की दिक्कतों को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने शत प्रतिशत अक्षय ऊर्जा पर आधारित संकेंद्रित विद्युत प्रणाली के लिए एक ग्रिड एकीकरण मॉडल तैयार किया है।

सार्क देशों के लिए वर्ष 2030 तक की अनुमानित लागत संरचना और प्रौद्योगिकी की स्थिति को मद्देनजर रखते हुए यह शत-प्रतिशत अक्षय ऊर्जा वाला ग्रिड एकीकरण मॉडल तैयार किया गया है। इस मॉडल में कोयला या जीवाश्म गैस के बजाय पावर-टू-गैस टेक्नोलॉजी से उत्पादित की गई सिंथेटिक अक्षय गैस का उपयोग किया जाता है। ऊर्जा के भंडारण के लिए इस प्रणाली में सिस्टम और प्रॉस्परर बैटरियों का उपयोग किया गया है। इसके उपयोग से सभी हर मौसम में बिजली की आपूर्ति 24 घंटे की जा सकती है।

ग्रिड एकीकरण मॉडल में सार्क क्षेत्र में उपलब्ध भूतापीय ऊर्जा, अलवणीकरण जल और औद्योगिक गैस की मांग से संबंधित आंकड़ों का उपयोग करते हुए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ऊर्जा भंडारण, ऊर्जा ब्रिजिंग और विद्युत संचरण समेत सभी तकनीकों को एकीकृत रूप में शामिल करके परीक्षण किए गए थे। इसमें पाया गया है कि सार्क के देशों के लिए अक्षय ऊर्जा पर आधारित एकीकृत विद्युत प्रणाली से कम कार्बन वाली बिजली उपलब्ध कराई जा सकती है।

"इस मॉडल में कोयला या जीवाश्म गैस के बजाय पावर-टू-गैस टेक्नोलॉजी से उत्पादित की गई सिंथेटिक अक्षय गैस का उपयोग किया जाता है। ऊर्जा के भंडारण के लिए इस प्रणाली में सिस्टम और प्रॉस्परर बैटरियों का उपयोग किया गया है। इसके उपयोग से सभी हर मौसम में बिजली की आपूर्ति 24 घंटे की जा सकती है। "

इस मॉडल को विकसित करने वाले अध्ययनकर्ताओं की टीम में फिनलैंड में शोधरत भारतीय वैज्ञानिकों आशीष गलगी एवं बीएचयू के वैज्ञानिक पीयूष चौधरी के अलावा फिनलैंड की लेप्पीनरान्टा यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों दिमित्री बोगदाओनोव और क्रिस्चियन ब्रेयर शामिल थे। उनका यह शोध प्लास नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

सार्क क्षेत्र के देशों की जनसंख्या, बिजली की खपत और ग्रिड संरचना के अनुसार विभाजित कुल सोलह उप-क्षेत्रों में चार अलग-अलग प्रस्तावित विकल्पों जैसे क्षेत्र विशेष, देशीय, सकल क्षेत्रीय और एकीकृत स्तर पर उच्च वोल्टेज डायरेक्ट करेंट (एचवीडीसी) ग्रिड लाइनों को जोड़कर किए गए परीक्षण के अनुसार एकीकृत विकल्प सबसे सस्ता साबित हो सकता है।

भारत और अन्य सार्क देशों में नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में कई बाधाएं आती हैं। इनमें नीतिगत और वित्त-पोषण संबंधी बाधाएं प्रमुख हैं। सार्क क्षेत्र के ऊर्जा संसाधनों को साझा करके इस क्षेत्र की बिजली आपूर्ति की जरूरतों को बेहतर ढंग से व्यवस्थित किया जा सकता है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार सार्क देशों के सभी क्षेत्रों को आपस में एक केंद्रीकृत एकीकृत ग्रिड से जोड़ दिया जाए तो यहां सम्मिलित रूप से बिजली की कुल लागत में प्रति मेगावाट लगभग 333 रुपये तक की गिरावट हो सकती है।

भारत समेत सभी सार्क देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, मालदीव, नेपाल और अफगानिस्तान अपर्याप्त बिजली आपूर्ति से जूझ रहे हैं। इन देशों की ज्यादातर आबादी बिजली से वंचित हैं और घरेलू जरूरतों के लिए भी उन्हें बिजली नहीं मिल पाती है। इस संकट से निपटने के लिए ग्रिड एकीकरण मॉडल सार्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

भारत में पवन ऊर्जा की गुणवत्ता बेहतर नहीं है और परमाणु ऊर्जा के उपयोग से कचरे का निपटारा भी एक समस्या है। जबकि सौर ऊर्जा पर आधारित इस प्रणाली से प्रदूषण का खतरा नहीं है। यह एकीकृत ग्रिड विद्युत प्रणाली अपनाई जाती है तो सार्क देशों के शहरों में थर्मल पावर प्लांटों के कारण होने वाले प्रदूषण को दूर करने में मदद मिल सकती है। (India Science Wire)

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