आर्थिक रूप से भी फायदेमंद हो सकती है रूफ वाटर हार्वेस्टिंग

पानी की कमी झेल रहे पर्वतीय इलाकों में छत पर वाटर हार्वेस्टिंग करना पानी की किल्‍लत से निजात दिलाने के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी फायदेमंद हो सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक ताजा अध्‍ययन में यह बात सामने आई है।

मेघालय के रि-भोई जिले के उमियम में किए गए इस अध्ययन के अंतर्गत छत पर वाटर हार्वेस्टिंग के जरिये इकट्ठा किए गए पानी का उपयोग किसानों ने जब खेती और पशुपालन में किया तो उनकी आमदनी वर्ष के उन महीनों में कई गुना बढ़ गई, जब पानी की कमी के कारण वे बेरोजगार हो जाते थे। अध्ययन से पता चला है कि रूफ वाटर हार्वेस्टिंग करने से पानी की किल्‍लत दूर होने के साथ-साथ रोजगार में भी 221 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई और पानी के कुशलतापूर्वक उपयोग की क्षमता में भी वृद्ध‍ि दर्ज की गई।

किसानों ने एकत्रित किेए गए इस पानी का इस्‍तेमाल घरेलू उपयोग के अलावा ब्रोकोली, राई, शिमला मिर्च, मक्‍का, टमाटर और फ्रेंचबीन जैसी फसलों की खेती के साथ-साथ पॉल्‍ट्री एवं पशुपालन में किया। इससे उन्हें आर्थिक रूप से काफी फायदा हुआ। शोधकर्ताओं के अनुसार सूअर पालन के साथ खेती करने वाले जो किसान वाटर हार्वेस्टिंग मॉडल से जुड़े थे, उन्‍हें औसतन 14,910 रुपये की शुद्ध आमदनी हुई। इसी तरह पॉल्‍ट्री के साथ खेती करने वाले किसानों को 11,410 रुपये की औसत आय प्राप्‍त हुई, जो अन्‍य किसानों की आमदनी से क्रमश: 261 प्रतिशत एवं 176 प्रतिशत अधिक थी।

“सूअर पालन के साथ खेती करने वाले जो किसान वाटर हार्वेस्टिंग मॉडल से जुड़े थे, उन्‍हें औसतन 14,910 रुपये की शुद्ध आमदनी हुई। इसी तरह पॉल्‍ट्री के साथ खेती करने वाले किसानों को 11,410 रुपये की औसत आय प्राप्‍त हुई, जो अन्‍य किसानों की आमदनी से क्रमश: 261 प्रतिशत एवं 176 प्रतिशत अधिक थी।"

अध्ययन में शामिल पूर्वोत्‍तर पर्वतीय क्षेत्र अुनसंधान परिसर के वैज्ञानिक डॉ अनूप दास ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि ‘‘इस प्रयोग के जरिये हम बताना चाहते हैं कि पर्वतीय इलाकों में रूफ वाटर हार्वेस्टिंग बरसात के पानी को एकत्रित करने का उपयुक्त जरिया बन सकती है। इसकी मदद से वर्ष के सूखे महीनों में भी लघु स्‍तरीय कृषि से किसान मुनाफा कमा सकते हैं।’’

उमियम के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले 11 किसान परिवारों को इस अध्ययन में शामिल किया गया था। छत के जरिये बरसाती पानी इकट्ठा करने के लिए उनके घर के आसपास पॉलीफिल्‍म युक्त जलकुंड (वाटर टैंक) बनाए गए। घर की छतों को कैचमेंट एरिया के तौर पर उपयोग करते हुए उसे पाइपों के जरिये पॉलीथीन युक्‍त वाटर टैंक से जोड़ दिया गया। इस प्रयोग के लिए प्रत्‍येक किसान के घर के आसपास औसतन 500 वर्गमीटर क्षेत्र को शामिल किया गया था।

वाटर टैंक में सिल्‍ट और गंदगी के जमाव को रोकने के लिए जस्‍ते, कंक्रीट या फिर एस्‍बेस्‍टस की छतों का उपयोग कैचमेंट एरिया के रूप में किया गया और फूस की छत पर पॉलीथीन की परत चढ़ा दी गई। इस तरह एकत्रित किए गए पानी की गुणवत्‍ता बेहतर होती है और उसे पीने के लिए भी उपयोग कर सकते हैं। प्रत्‍येक वाटर टैंक में औसतन 53 घन मीटर पानी जमा हुआ, जिसमें अन्य मौसमी दशाओं में होने वाली बरसात के कारण इकट्ठा किया गया 16 घन मीटर पानी भी शामिल था।

डॉ. अनूप दास के मुताबिक ‘‘पहाड़ी इलाकों में घाटियों के जलस्रोतों में तो पानी जमा हो जाता है, पर ऊंचे क्षेत्रों में मौजूद जलस्रोतों से पानी का रिसाव एक समस्‍या है। इससे निपटने के लिए जलकुंड बनाकर उसकी सतह में पॉलीथीन की परत लगाने से पानी का रिसाव नहीं हो पाता और शुष्‍क महीनों में लोग पानी की किल्‍लत से बच जाते हैं। अभी इस मॉडल में और भी सुधार किए जा सकते हैं। लेकिन इतना तो तय है कि यह मॉडल पहाड़ों के लिए उपयोगी होने के साथ-साथ कम वर्षा वाले मैदानी इलाकों में भी पानी कि कमी से निपटने में कारगर साबित हो सकता है।’’

मेघालय के उमियम में स्थित आईसीएआर के पूर्वोत्‍तर पर्वतीय क्षेत्र अुनसंधान परिसर, बारामती स्थित राष्‍ट्रीय अजैविक स्‍ट्रैस प्रबंधन संस्‍थान, झांसी स्थित भारतीय चरागाह और चारा प्रबंधन संस्‍थान के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह अध्‍ययन शोध पत्रिका करंट साइंस के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। अध्‍ययनकर्ताओं की टीम डॉ अनूप दास के अलावा आरके सिंह, जीआई रामकृष्‍ण, जयंत लयेक, एके त्रिपाठी, एसवी न्गाचान, बीयू चौधरी, डीपी पटेल, डीजे राजखोवा, देबासीश चक्रबर्ती और पीके घोष शामिल थे। (India Science Wire)