बिजली संयंत्रों से कार्बन कैप्चर के लिए ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकी                                                                 

      

(फोटोः क्रिएटिव कॉमन्स)

बिजली संयंत्रों से कार्बनडाईऑक्साइड (CO2) कैप्चर के लिए ऊर्जा कुशल संयंत्र डिजाइन और विकसित करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी ने राष्ट्रीय तापविद्युत निगम (एनटीपीसी लिमिटेड) के साथ हाथ मिलाया है।

यह प्रौद्योगिकी एक नये सक्रिय अमोनिया यौगिक ऐमिन विलायक (आईआईटीजीएस) का उपयोग करके फ्लू गैस पर काम करती है। कमर्शियल सक्रिय एमडीईए (मोनोएथेनॉलमाइन) विलायक की तुलना में यह प्रौद्योगिकी 11 प्रतिशत कम ऊर्जा और बेंचमार्क एमईए (मोनोएथेनॉलमाइन) विलायक की तुलना में 31 प्रतिशत कम ऊर्जा की खपत करती है। इस परियोजना से तेल, प्राकृतिक गैस, बायोगैस उद्योग और पेट्रोलियम रिफाइनरियों को लाभ हो सकता है।

इस स्वदेशी तकनीक को प्रोफेसर बिष्णुपाद मंडल, केमिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी, गुवाहाटी के नेतृत्व में विकसित किया गया है। यह परियोजना, अपने अनुसंधान और शिक्षा के माध्यम से, संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को भी समर्थन तथा मजबूती प्रदान करेगी। इसके साथ-साथ यह प्रौद्योगिकी देश के लिए बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा बचा सकती है।


बिजली संयंत्रों से कार्बनडाईऑक्साइड (CO2) कैप्चर के लिए ऊर्जा कुशल संयंत्र डिजाइन और विकसित करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी ने राष्ट्रीय तापविद्युत निगम (एनटीपीसी लिमिटेड) के साथ हाथ मिलाया है।

परीक्षण अध्ययन के पूर्ण होने के बाद, पायलट प्लांट को एनटीपीसी एनर्जी टेक्नोलॉजी रिसर्च एलायंस (NETRA) में स्थानांतरित कर दिया गया है। आईआईटी, गुवाहाटी और एनटीपीसी लिमिटेड इस प्रौद्योगिकी का पेटेंट कराने का प्रयास कर रहे हैं। अध्ययन के अगले चरण में औद्योगिक फ्लू गैस का उपयोग करके पायलट-पैंट का परीक्षण शामिल होगा।

प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक उपयोग, और इसके लाभ के बारे में विस्तार से बताते हुए, आईआईटी गुवाहाटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर बिष्णुपाद मंडल बताते हैं कि “मानवजनित कार्बनडाईऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार कारणों में से एक है। इस वैश्विक चुनौती को दूर करने के लिए वैज्ञानिक समुदाय द्वारा व्यापक शोध प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें कार्बनडाईऑक्साइड कैप्चर के लिए दक्षता में सुधार के माध्यम से मौजूदा प्रौद्योगिकियों में संशोधन शामिल हैं।”

एमईए (मोनोएथेनॉलमाइन) और अन्य गुणों वाले विलायक-आधारित प्रौद्योगिकियां रासायनिक उद्योग में कार्बनडाईऑक्साइड कैप्चर के लिए उपलब्ध हैं। इस तकनीक का उपयोग कोयले और गैस से चलने वाले बिजली संयंत्रों में मुख्य रूप से कम मात्रा में खाद्य-ग्रेड कार्बनडाईऑक्साइड का उत्पादन करने के लिए किया जाता है। बिजली संयंत्रों में बड़े पैमाने पर CO2 कैप्चर के लिए इस प्रक्रिया को अपनायें तो अधिक ऊर्जा खपत होती है। इसीलिए, आईआईटी, गुवाहाटी ने फ्लू गैस से CO2 कैप्चर के लिए एक ऊर्जा-कुशल ऐमिन-आधारित प्रक्रिया विकसित की है।

'सभी के लिए बिजली' के भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने, और अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में महत्वपूर्ण वृद्धि को बनाए रखने पर भारत का बल है। इसके साथ ही, भारत कार्बनडाईऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास की दिशा में वैश्विक प्रयासों का समर्थन करता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह तकनीक इन दोनों लक्ष्यों को एक साथ हासिल करने में मदद करेगी।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/IIT Guwahati/CO2 capture/Hin/13/04/2022