‘नेट-जीरो’ कार्बन फुटप्रिंट लक्ष्य की ओर बढ़े चमड़ा उद्योग: डॉ जितेंद्र सिंह                                                                 

      

मड़ा प्रसंस्करण गतिविधि के कार्बन फुटप्रिंट को शून्य स्तर तक लाने की जरूरत है, और पशुओं के चमड़े से बने उत्पादों पर आधारित जैव-अर्थव्यवस्था वर्तमान समय का एक नया मंत्र है। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी; पृथ्वी विज्ञान; प्रधानमंत्री कार्यालय और कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेन्द्र सिंह ने यह बात कही है।

डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा, चमड़ा उद्योग से जुड़े तमिलनाडु जैसे स्थानों पर शून्य लिक्विड उत्सर्जन को पर्यावरणीय मानदंड के रूप में लागू करने की आवश्यकता है। डॉ सिंह बृहस्पतिवार को चेन्नई स्थित सीएसआईआर-केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान (सीएलआरआई) के प्लैटिनम जुबली समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ब्रांड एवं कार्यकर्ता निर्माण के अलावा चमड़ा उद्योग में अनुसंधान एवं विकास, और स्थिरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्टार्ट-अप नवाचार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

डॉ सिंह ने कहा, सीएसआईआर-सीएलआरआई के प्लैटिनम से शताब्दी वर्ष तक की यात्रा में चमड़ा क्षेत्र की स्थिरता नई चुनौती के रूप में उभरने की संभावना है। अगले 25 वर्षों के दौरान चमड़ा अनुसंधान और उद्योग के लिए नई दृष्टि, स्थिरता, नेट-जीरो’ कार्बन फुटप्रिंट, चमड़े पर आधारित सामग्रियों का पूर्ण पुनर्चक्रण, चमड़े के उत्पादों पर आधारित जैव-अर्थव्यवस्था, और आय समानता सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी।

चमड़ा प्रसंस्करण गतिविधि के कार्बन फुटप्रिंट को शून्य स्तर तक लाने की जरूरत है, और पशुओं के चमड़े से बने उत्पादों पर आधारित जैव-अर्थव्यवस्था वर्तमान समय का एक नया मंत्र है। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी; पृथ्वी विज्ञान; प्रधानमंत्री कार्यालय और कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेन्द्र सिंह ने यह बात कही है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पैरों को स्कैन करने के लिए 3डी तकनीक का उपयोग करके भारतीय आबादी के लिए अनुकूलित जूते तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है। पहले चरण में इस परियोजना को लागू करने के लिए देश के 73 जिलों को शामिल किया गया है। उन्होंने कहा, चमड़े के जूतों को विशिष्ट बिक्री गुणों के साथ पैर की स्वच्छता और पहनने में आराम सुनिश्चित करने वाले फुटकेयर सॉल्यूशंस के रूप में डिजाइन करने की जरूरत है।

1947 में भारतीय चमड़ा क्षेत्र ने लगभग 50,000 लोगों को ही आजीविका के अवसर प्रदान किए, लेकिन आज यह देश में 45 लाख से अधिक लोगों की आजीविका का समर्थन करता है। 2021 में, चमड़ा क्षेत्र से निर्यात प्राप्ति का मूल्य 40,000 रुपये करोड़ था। वर्ष 1948 में सीएलआरआई की स्थापना को याद करते हुए डॉ जितेन्‍‍द्र सिंह ने कहा, पहले 25 वर्षों में, संस्थान ने प्रौद्योगिकी को अगम्य तक पहुँचाने और इस क्षेत्र के नियोजित विकास को सुविधाजनक बनाने पर ध्यान केंद्रित किया। अगले 25 वर्षों के दौरान, भारतीय चमड़ा अनुसंधान और उद्योग आधुनिकीकरण तथा पर्यावरण संबंधी तैयारियों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

डॉ जितेन्‍द्र सिंह ने तमिलनाडु में चर्मशोधन क्षेत्र को दोबारा चालू कराने में मदद करने में सीएलआरआई की उत्कृष्ट भूमिका की भी सराहना की, जब उच्चतम न्यायालय ने 1996 में सभी 764 चालू चर्मशोधन कारखानों में "डू इकोलॉजी" उपायों के माध्यम से लगभग 400 चमड़ा बनाने के कारखानों को नौ महीने के भीतर बंद करने का आदेश दिया था। उन्होंने कहा अगले 25 वर्ष के दौरान चमड़ा अनुसंधान और उद्योग के लिए नई परिकल्‍‍पना नवाचार और ब्रांड निर्माण के माध्यम से विश्व बाजार में एक नया स्थान बनाने की चुनौती होगी।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/CSIR/CLRI/Hin/20/05/2022