कोविड-19 के उपचार के लिए आयुर्वेदिक दवाओं के परीक्षण के बारे में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे ने कहा है कि “आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से आयुर्वेद की वैधता के परीक्षण के लिए सीएसआईआर और आयुष मंत्रालय की साझेदारी ऐतिहासिक है। दोनों संस्थान इस पर मिलकर काम करेंगे, जिससे हमें उम्मीद है कि इतिहास में छिपे तथ्य उभरकर सामने आ सकते हैं।” डॉ मांडे ने यह बात अपने एक ट्वीट के माध्यम से कही है।
This is a historic partnership: validating Ayurveda from modern science perspective. @CSIR_IND & @moayush will work together- with blessings from all, we hope that history will unfold itself.
— Shekhar Mande @shekhar_mande May 14, 2020
आयुष मंत्रालय के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीपद येसो नाइक ने भी ट्वीट करके कहा है कि - “आयुष और सीएसआईआर कोविड-19 महामारी के खिलाफ चार आयुर्वेद आधारित यौगिकों को मान्य करने पर एक साथ काम कर रहे हैं। इससे संबंधित परीक्षण एक सप्ताह के भीतर शुरू हो जाएंगे। कोविड-19 रोगियों के उपचार के लिए इन यौगिकों को अतिरिक्त थेरैपी और मानक देखभाल के रूप में आजमाया जाएगा। मुझे उम्मीद है कि हमारी पारंपरिक औषधीय प्रणाली इस महामारी को दूर करने का रास्ता दिखा सकती है।”
I am sure and quite hopefull that, our traditional medicinal system will show the way to overcome this Pandemics.
— Shripad Y. Naik @shripadynaik May 14, 2020
सीएसआईआर और आयुष मंत्रालय मिलकर जिन चार आयुर्वेदिक यौगिकों का कोविड-19 के खिलाफ परीक्षण कर रहे हैं, उनमें अश्वगंधा, यष्टिमधु, गुडुची, पिप्पली और मलेरिया-रोधी दवा आयुष-64 शामिल हैं। हाल में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने इस संबंध में घोषणा की थी और कहा था कि सीएसआईआर और आयुष मंत्रालय इस पर मिलकर काम करेंगे। बताया जा रहा है कि तीन महीने में इस अध्ययन के परिणाम सामने आ सकते हैं।
सीएसआईआर और आयुष मंत्रालय मिलकर जिन चार आयुर्वेदिक यौगिकों का कोविड-19 के खिलाफ परीक्षण कर रहे हैं, उनमें अश्वगंधा, यष्टिमधु, गुडुची, पिप्पली और मलेरिया-रोधी दवा आयुष-64 शामिल हैं।
आयुष सचिव राजेश कोटेचा ने अपने एक बयान में कहा है कि “आयुष और सीएसआईआर के बीच यह सहयोग एक व्यापक परिप्रेक्ष्य पर आधारित है। अश्वगंधा के परीक्षण के लिए उच्च जोखिम वाली आबादी पर दो प्रकार के अध्ययन किये जा रहे हैं। इसके तहत हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और अश्वगंधा के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन की योजना भी बनायी गई है।”
यह एक बहुआयामी क्लीनिकल अध्ययन है, जिसे देश के विभिन्न हिस्सों में अंजाम दिया जाना है। इस अध्ययन से संबंधित एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है और दिशा-निर्देश तय कर लिए गए हैं। सीएसआईआर समेत देश के अन्य प्रमुख संस्थानों के वैज्ञानिकों द्वारा इन दिशा-निर्देशों की समीक्षा की गई है।
इस संबंध में भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (आईसीएमआर) की सलाह को भी नजरअंदाज नहीं किया गया है। कुल मिलाकर इसे एक मजबूत अध्ययन की रूपरेखा बताया जा रहा है। इस अध्ययन को अंततः किसी प्रतिष्ठित शोध पत्रिका में प्रकाशित किया जा सकता है।
डॉ मांडे ने कहा है कि “आयुर्वेद हजारों वर्षों की चिकित्सा पद्धति पर आधारित है और हम आयुर्वेद पर भरोसा करते हैं। इसलिए, आयुर्वेद के कुछ सिद्धांतों को वैधता दिलाना महत्वपूर्ण हो सकता है। कोरोना वायरस के खिलाफ इन दवाओं का परीक्षण करने का यह सबसे उपयुक्त समय है।”
इंडिया साइंस वायर