शार्क संरक्षण में महत्वपूर्ण हो सकती है मछुआरों और बाजार की भूमिका                                                                 

      

छोटी शार्क मछलियां

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शार्क मछली पालक देश है लेकिन भारतीय मछुआरे और मछली व्यापारी शार्क संरक्षण संबंधी नियमों से अनजान हैं।

भारतीय मछुआरे प्रायः बड़ी शार्क मछलियां नहीं पकड़ते हैं बल्कि दूसरी मछलियों को पकड़ने के लिए डाले गए जाल में बड़ी शार्क भी फंसकर आ जाती हैं। मछुआरों और व्यापारियों को ज्ञान है कि व्हेल शार्क को पकड़ना गैरकानूनी है। पर वे इसके अलावा अन्य शार्क प्रजातियों, जैसे- टाइगर शार्क, हेमरहेड शार्क, बुकशार्क, पिगी शार्क आदि के लिए निर्धारित राष्ट्रीय शार्क संरक्षण मानकों को नहीं जानते।

शार्क मछलियों को उनके मांस और पंखो के लिए पकड़ा जाता है. शार्क पंखों के अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति काफी हद तक अनियमित है। भारत में शार्क मांस के लिए एक बड़ा घरेलू बाज़ार है, जबकि निर्यात बाजार छोटा है। यहां छोटे आकार और किशोर शार्क के मांस की मांग सबसे ज्यादा है। आमतौर पर एक मीटर से कम लंबी छोटी शार्क मछलियां ही पकड़ी जाती हैं। छोटी शार्क स्थानीय बाजारों में मंहगी बिकती हैं।

शार्क संरक्षण को लेकर किये गए एक अध्ययन में ये बातें उभर कर आई हैं. अशोका यूनिवर्सिटी, हरियाणा, जेम्स कुक यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया और एलेस्मो प्रोजेक्ट, संयुक्त अरब अमीरात के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में शार्क व्यापार के दो प्रमुख केंद्रों गुजरात के पोरबंदर और महाराष्ट्र के मालवन में सर्वेक्षण किया गया है। शार्क मछलियां पकड़ने में गुजरात और महाराष्ट्र का कुल 54 प्रतिशत योगदान है। शार्क मछलियां पकड़ने के लिए पोरबंदर में 65 प्रतिशत ट्राल नेटों और मालवन में 90 प्रतिशत गिलनेटों सहित हुक ऐंड लाइन मत्स्य पालन विधि का उपयोग होता है।


मछली बाजार में शोधार्थियों के साथ डॉ. दिव्या कर्नाड

" शार्क मछलियों को उनके मांस और पंखो के लिए पकड़ा जाता है. शार्क पंखों के अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति काफी हद तक अनियमित है। भारत में शार्क मांस के लिए एक बड़ा घरेलू बाज़ार है, जबकि निर्यात बाजार छोटा है। "

अध्ययन से जुड़ीं अशोका यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता डॉ. दिव्या कर्नाड ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “बड़ी शार्क मछलियों की संख्या में लगातार गिरावट की जानकारी मछुआरों और व्यापारियों को है। शार्क व्यापारी स्थानीय नियमों का पालन भी करते हैं, भारत में शार्क मछलियों की संख्या में गिरावट के सही मूल्यांकन के लिए ऐसे शोध बड़े पैमाने पर करने होंगे।”

शोधकर्ताओं के अनुसार पिछले दस सालों में शार्क पंखों की अंतरराष्ट्रीय बिक्री में 95 प्रतिशत तक गिरावट हुई है। उत्तर-पश्चिमी भारत में शार्क मछलियों की संख्या और आकार में लगातार गिरावट का आर्थिक असर मछुआरों और मछली व्यापारियों पर पड़ रहा है। अध्ययन के आंकड़े स्थानीय मछुआरों, नौका मालिकों, खुदरा विक्रेताओं और मछली व्यापारियों से साक्षात्कार के आधार पर एकत्रित किए गए।

अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि मछली पकड़ना भारतीय मछुआरों का प्राथमिक व्यवसाय है और शार्क व्यापार सिर्फ अतिरिक्त आमदनी का जरिया है। व्यापारी पूरी शार्क एक जगह से ही खरीदते हैं, लेकिन उसके पंख और मांस अलग- अलग बेचते हैं। पंख बाजार के बड़े मछली व्यापारियों को और ताजा मांस स्थानीय बाजार में बेचा जाता है। शार्क पंखे मालवन से मडगांव और मंगलूरु जैसे दो प्रमुख मछली व्यापार केंद्रों से होते हुए अंततः चीन और जापान में पंखों को भेजे जाते हैं। इसी तरह, पोरबंदर से ओखा, वैरावल, मुम्बई, कालीकट और कोच्चि से होते हुए सिंगापुर, हांगकांग और दुबई व आबूधाबी तक शार्क के पंख भेजे जाते हैं। शार्क मछलियों के पंखों को चीन, जापान, इंडोनेशिया और थाइलैंड जैसे देशों में सूप बनाने और दवाओं में उपयोग किया जाता है।

महासागर की सबसे बड़ी परभक्षी मछलियों शामिल शार्क की लगभग 4000 प्रजातियां है। भारत में शार्क प्रजातियों के पकड़ने के साथ साथ उनके संरक्षण संबंधी नियमों को कड़ाई से लागू करने के लिए सभी राज्यों के मत्स्य पालन विभागों, वन विभाग और समुद्री पुलिस के एक संयुक्त समन्वयित प्रयास की आवश्यकता है। स्थानीय मछुआरों एवं व्यापारियों में शार्क प्रबंधन और संरक्षण के प्रति जागरूकता भी सर्वाधिक कारगर साबित हो सकती है।

यह अध्ययन एम्बिओ जर्नल में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में डॉ. दिव्या कर्नाड के अलावा दीपानी सुतारिया और रीमा डब्ल्यू. जाबाडो भी शामिल थे।
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